गोरक्षनाथ शोधपीठ में विशिष्ट व्याख्यान का हुआ आयोजन

 

प्राण प्रकृति एवं शरीर के सभी ऊर्जाओं का मूल है – डॉ. सुनील कुमार

श्वसन क्रिया शरीर में प्राण की सरलतम अभिव्यक्ति है – डॉ० सुनील कुमार

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में स्थित महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ में कुलपति प्रो. पूनम टंडन के संरक्षण में एक विशिष्ट व्याख्यान विषय ’प्राण की नाथ यौगिक अवधारणा’ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ शोधपीठ के उप निदेशक डॉ. कुशलनाथ मिश्र के द्वारा किया गया। व्याख्यान के मुख्य वक्ता महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ के रिसर्च एसोसिएट डॉ. सुनील कुमार रहे।

 

विशिष्ट व्याख्यान के वक्ता डॉ. सुनील कुमार ने प्राण की नाथ यौगिक अवधारणा पर विस्तार से समझाते हुए प्राण के विविध स्वरूपों पर प्रकाश डाला। उन्होंने प्राण को आधुनिक विज्ञान के संदर्भ में समझाया। डॉ. सुनील ने अपने सम्बोधन में कहा कि प्राण प्रकृति एवं शरीर के सभी ऊर्जाओं का मूल है। प्राण अति सूक्ष्म है। प्राण से ही सभी शक्तियों की उत्पत्ति होती है। प्राण शरीर में नाड़ियों के माध्यम से प्रवाहित होता है। इन नाड़ियों का नियंत्रण नाड़ियों के जाल एवं केंद्र स्वरूप चक्रों के माध्यम से होता है। उन्होंने प्राण के नियमन की चर्चा करते हुए कहा कि प्राण के नियंत्रण से प्रकृति की सभी शक्तियों पर नियंत्रण किया जा सकता है। श्वसन क्रिया शरीर में प्राण की सरलतम अभिव्यक्ति है। प्राण के नियमन का सबसे आसान तरीका श्वसन प्रक्रिया का नियंत्रण करना है। इसी को प्राणायाम, बंध एवं मुद्राओं के माध्यम से साधा जाता है। उन्होंने नाथ योगियों के योगदानों के बारें में बताते हुए कहा कि नाथ योगियों ने प्राण के ऊपर महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।

 

इस व्याख्यान में श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ के सहायक निदेशक डा. सोनल सिंह, सहायक ग्रन्थालयी डॉ. मनोज कुमार द्विवेदी, चिन्मयानंद मल्ल, शोध अध्येता डा. कुंवर रणंजय सिंह, प्रिया सिंह, रणजीत कुमार गुप्ता, मोनिका रावत, नीतू जायसवाल, सुघोष मिश्र, अन्य विभागों के शोध छात्र एवं परास्नातक कक्षाओं के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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