विश्व ग्लूकोमा सप्ताह 2024 (10 मार्च से 16 मार्च, 2024) के अवसर पर विवेकानन्द पॉलीक्लिनिक एवं आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ में ग्लूकोमा जागरूकता शिविर का आयोजन
ग्लूकोमा सप्ताह को और व्यापक रूप से मनाने के लिए दिनांक 14, 15 और 16 मार्च, 2024 को दोपहर 2ः00 बजे से 4ः00 बजे तक संस्थान के नेत्र विभाग (नेत्र ओपीडी) में निःशुल्क ग्लूकोमा स्क्रीनिंग शिविर भी आयोजित किया जायेगा।* जिसमें नेत्र विभाग के विशेषज्ञ डा अपर्णा अग्रवाल, जिम्मी मित्तल, डा आलोक कुमार अंशु ग्रहण करेंगे।
इस संबंध में *संस्थान के नेत्र रोग विशेषज्ञ एवं ग्लूकोमा स्पेशलिस्ट डा0 जिम्मी मित्तल* ने बताया कि ग्लूकोमा को आमतौर पर काला मोतिया नाम से जाना जाता है। आंखों की ऑप्टिक नर्व के क्षतिग्रस्त होने से जुड़ी कुछ समस्याएं ग्लूकोमा की श्रेणी में रखी जाती हैं। यानी ग्लूकोमा एक से ज्यादा ऐसे रोग या समस्याओं के समूह को कहते हैं जो ऑप्टिक नर्व में नुकसान और आँख के बढ़े हुए प्रेशर/ तनाव से जुड़ी हैं। समय पर जांच या इलाज ना होने पर कई बार ये समस्याएं दृष्टि दोष या दृष्टि हानि का कारण भी बन सकती है। ग्लूकोमा के तीन प्रकार होते हैं। ओपन-एंगल ग्लूकोमा, एंगल-क्लोजर ग्लूकोमा और नॉर्मल-टेंशन ग्लूकोमा।
ग्लूकोमा आमतौर पर 40 साल से अधिक उम्र के लोगों पर देखा जाता है। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं हैं कि यह कम उम्र के लोगों में नहीं हो सकता है। हालांकि कम उम्र के लोगों में इसके मामले अपेक्षाकृत कम संख्या में देखने में आते हैं। ग्लूकोमा के लिए सिर्फ ज्यादा उम्र ही नहीं बल्कि कई अन्य कारण भी जिम्मेदार हो सकते हैं। जैसे मधुमेह व उच्च रक्तचाप के पीड़ितों में ग्लूकोमा के होने का जोखिम काफी ज्यादा रहता है। इसके अलावा जेनेटिक्स या फैमिली में ग्लूकोमा का इतिहास, आंखों में चोट या कोई समस्या, स्टेरॉयड या कुछ अन्य दवाओं का लंबे समय तक सेवन से भी ग्लूकोमा के होने का जोखिम बढ़ जाता है।
उन्होंने यह भी बताया कि, पिछले 10 सालों में ग्लूकोमा के मामलों में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है, जिसके मुख्य कारणों में से एक जीवनशैली जनित बीमारियों जैसे मधुमेह और उच्च रक्तचाप के मरीजों की संख्या का बढ़ना है। जिन्हें ग्लूकोमा के लिए सबसे जोखिम भरे कारकों में से एक माना जाता है।
ग्लूकोमा को आँखकी रोशनीका गुप्त चोर कहा जाता है क्योंकि इसके कोई प्रमुख लक्षण नहीं होते और इसका पता रूटीन आई चेकअप पर ही चलता है।
ग्लूकोमा के लक्षण ज्यादातर मामलों में समस्या के शुरुआती दौर में पता नहीं चल पाते हैं। ऐसे में बड़ी संख्या में लोगों में इसके इलाज में देरी हो जाती है। चिकित्सक तथा जानकारों का कहना है कि ऐसे लोग जिनके परिवार में इस समस्या का इतिहास रहा हो उन्हें नियमित अंतराल पर अपनी आंखों की जांच करवाते रहना चाहिए। वहीं जिन लोगों को मधुमेह, हाई बीपी या ग्लूकोमा के जोखिम को बढ़ाने वाली समस्याएं हैं उन्हें भी अपनी नियमित जांच करवाते रहना चाहिए।
*संस्थान के सचिव स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी* ने नेत्र विभाग द्वारा आयोजित इस शिविर की भूरि – भूरि प्रसंन्नता करते हुए बताया कि ऐसे शिविरों के माध्यम से समाज में फैल रहे खरतनाक बिमारियों के प्रति जागरूकता आयेगी और समय रहते इन बिमारियों का उपचार किया जाना संभव हो सकता है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि अस्पताल सदैव विभिन्न विभागों से संबधित बिमारियों के बारे में जागरूकता शिविर करती रहेगी जिससे लोग जागरूक हो सके और असमय काल के गाल में न जा पायें।
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