श्री जय नारायण मिश्र पी. जी. कॉलेज लखनऊ में चल रहे दो दिवसीय, केकेसी लिट फेस्ट 2024 आयोजित

श्री जय नारायण मिश्र पी. जी. कॉलेज लखनऊ में , केकेसी लिट फेस्ट 2024 का उद्घाटन, मुख्य अतिथि, श्री सुधीर मिश्रा, मशहूर फ़िल्म निर्माता एवं निर्देशक के कर कमलो द्वारा, मां सरस्वती प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर हुआ। इस अवसर पर उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता, श्री वी.एन.मिश्र, अध्यक्ष, महाविद्यालय प्रबंध समिति ने की। महाविद्यालय प्राचार्य प्रो विनोद चंद्रा ने अतिथियों का स्वागत दुशाला एवं स्मृति चिन्ह देकर किया। लिट फेस्ट के प्रथम सत्र में प्रो विनोद चंद्रा ने फिल्म निर्माता एवं निर्देशक, श्री सुधीर मिश्रा के साथ लखनऊ से फिल्म जगत का जुड़ाव विषय पर संवाद किया। एक प्रश्न के जवाब में श्री सुधीर मिश्रा ने कहा कि, नागपुर में उनकी पैदाइश हुई और लखनऊ के शाह नजफ रोड पर उनका पैतृक आवास है।

21 -22 वर्ष की अवस्था में उन्होंने थिएटर की शुरुआत की। तब तक यह नहीं स्पष्ट था कि, जाना किधर है? थिएटर के वक्त उन्हें निर्देशक, बादल सरकार मिले, जिन्होंने उनकी सोच को बदला। बादल सरकार को श्री सुधीर मिश्रा अपना गुरु मानते हैं।

उन्होंने बताया कि, 22 वर्ष की आयु में उन्हें कुंदन शाह मिले, जिन्होंने उनसे स्क्रिप्ट लिखने को कहा। और परिणाम स्वरुप ‘जाने भी दो यारो’ जैसी लोकप्रिय फिल्म लोगों को देखने को मिली।

उन्होंने युवा छात्र-छात्राओं के लिए कहा कि, हंस आसमान में चाहे जैसे उड़े जब वह पानी पर उतरता है, तो बहुत ही खूबसूरत तरीके से जल को स्पर्श करता है। इसी तरीके से हम सबको अपना अपना पानी ढूंढना पड़ता है, जिससे कि धरातल पर हमारी लैंडिंग अच्छी हो सके। उन्होंने लखनऊ के बारे में पूछे जाने पर कहा कि, लखनऊ पूरे देश में एक अकेला ऐसा शहर है, जो सिंगुलर टाउन है। ऐसा शहर पूरे देश में नहीं है। उन्होंने लखनऊ के बारे में कहा कि, यहां का सेकुलरिज्म ओरिजिनल है, फेक नहीं है। यहां बदतमीजी भी बहुत तमीज से होती है। वहीं पर उन्होंने कहा कि, लखनऊ के लोग सीधी बात नहीं करते। लेकिन उनकी बातों में एक इश्क सा होता है। उन्होंने कहा कि, तमीज का अर्थ केवल विनम्रता नहीं बल्कि, एक पूरी संस्कृति है। लखनऊ और नवाबियत के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि, लखनऊ केवल नवाबियत तक है। ऐसा नहीं है बल्कि उसके आगे और उसके पीछे भी बहुत कुछ है। उनकी फिल्मों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, मैंने कोई परंपरा नहीं शुरू की। लेकिन एक परंपरा को आगे जरुर बढ़ाया। लखनऊ की विरासत पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि, लखनऊ की विरासत के प्रति यहां के लोग थोड़े कम संवेदनशील और गंभीर दिखते है। उन्होंने सिनेमा और समाज के संबंधों पर कहा कि, जो समाज में होता है वही सिनेमा दिखाता है। लेकिन सिनेमा बहुत सी अच्छी चीजे भी दिखाता है और सच्चाई भी दिखता है। लेकिन लोग अच्छी चीजों को कम ग्रहण करते हैं और दूसरी चीजों को ज्यादा कॉपी करते हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में परफेक्शन का जमाना होगा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पूरे परिदृश्य को बदलने वाला है। इसलिए छात्र-छात्राओं को पढ़ना होगा, मेहनत करनी होगी और टेक्नोलॉजी से अपने आप को जोड़ना होगा। तभी समय के साथ कदम से कदम मिलाकर वह चल सकेगे।

प्राचार्य प्रो विनोद चंद्रा ने सुधीर मिश्रा से आग्रह किया कि, महाविद्यालय में भविष्य में खुलने वाले फिल्म एवं मीडिया सेंटर के लिए उनका सहयोग करे। इस पर श्री सुधीर मिश्रा ने कहा कि,महाविद्यालय के फिल्म मीडिया स्टडीज के लिए वह अपना पूरा योगदान देंगे। उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत राइटिंग और एडिटिंग के कोर्स से की जाए तो ज्यादा अच्छा है। राइटिंग और एडिटिंग एक दूसरे के पूरक है। राइटिंग एडिटिंग को सिखाती है और एडिटिंग राइटिंग को सिखाती है। उत्तर प्रदेश में एडिटिंग एवं राइटिंग की प्रतिभाओं का भंडार है। उनको दिशा देना आवश्यक है और वह इस कार्य में महाविद्यालय को अपना पूरा सहयोग प्रदान करेंगे।

लिट़् फेस्ट के दूसरे सत्र में आयोजित संबाद में डॉ अंशु माली शर्मा ने इतिहासकार श्री रवि भट्ट के साथ लखनऊ का नवाबी इतिहास विषय पर संवाद किया। श्री रवि भट्ट ने बताया कि, वह यहां के पूर्व छात्र रह चुके हैं। कई वर्ष पहले यहां के केकेसी इंटर कॉलेज से ही उन्होंने 9वी व 10वी की पढ़ाई की। उनकी जड़ों में जो मजबूती है वह इसी कॉलेज की वजह से है। उन्होंने कहा कि, पढ़ाई में जब मन नहीं लगता था, तब कक्षा में खिड़की पर आकर चारबाग की ट्रैफिक देखकर मन बहलाते थे। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि, लखनऊ भाषा और साहित्य की भूमि है। उन्होंने कहा कि बहुत से लोगों को यह नहीं मालूम होगा की मिर्ज़ा ग़ालिब पर लखनऊ का बहुत एहसान है। उन्होंने बताया कि, जिंदगी जिंदा दिली का नाम है, लिखने वाले शेख इमाम बक्श और आतिश ने लखनऊ में उर्दू स्कूल ऑफ शायरी की स्थापना की थी। उन्होंने कहा कि,मीर अनीस, मीर तकी मीर, आतिश और मिर्ज़ा ग़ालिब चार मशहूर शायरों में से साढे तीन लखनऊ के ही हैं। कहते हैं कि मिर्ज़ा ग़ालिब आधे लखनऊ के ही थे। उन्होंने बताया कि, रेखता के जगह पर रेखती की शुरुआत लखनऊ से ही हुई थी जो की महिलाओं की आवाज समझी जाती थी। लेकिन समय बीतने पर में उर्दू की इस समृद्ध विधा के विलुप्त हो जाने से उर्दू शायरी कमजोर हुई। उन्होंने लखनऊ के बारे में बताया कि, यह एक अद्भुत शहर है। 1947 में बंटवारे के वक्त पूरे देश में हिंसा हुई, किंतु लखनऊ में एक भी हिंसा नहीं होना ही यहां की खूबसूरती है। यहां पर शिया शासको का प्रभुत्व रहा और कहते हैं कि सुन्नियों से ज्यादा उनका जुड़ाव हिंदुओं से था। श्री रवि भट्ट ने बताया कि, आज उनकी शूटिंग का सेट, रेड पार्ट 2 लखनऊ में लगा हुआ था। जहां से वह सीधे शूटिंग कॉस्ट्यूम में ही महाविद्यालय लिट फेस्ट में प्रतिभाग करने के लिए पहुंचे। उनका इस महाविद्यालय से पुराना जुड़ाव है जो उनको यहां खींच लाया।

 

तीसरे सत्र में प्रो एस सी हजेला ने प्रोफेसर आफॅ इमीनेंस, प्रो निशि पांडेय से ‘लखनऊ का लिबास और संस्कृति’ विषय पर संवाद किया। लखनऊ के लिबास और पहनावे पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि, नवाबों के समय में हिंदू और मुस्लिम पुरुषों का पहनावा लगभग एक जैसा था। किंतु महिलाओं का पहनावा अलग होता था। पुरुष नवाबी दिल्ली जैसी पोशाक पहनते थे। किंतु वह उतने भारी भरकम नहीं होते थे, जितने दिल्ली के नवाबों के होते थे। वह लोग हल्के और टाइट पोशाक पहनते थे। महिलाएं बहुत तड़क-भड़क वाले कपड़े नहीं पहनती थी किंतु बहुत ही सुरुचि पूर्ण ढंग से सिले हुए, सोबर दिखने वाले पोशाक पहनती थी। उस समय की चिकनकारी और जरदोजी, आज भी चलन में है। आज के युवा इन पहनावो को अपने हिसाब से पहनते हैं। उस समय की ब्राइडल कॉस्टयूम आज भी प्रचलन में है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि, साहित्य और संस्कृति मानवीय मूल्यो को बढ़ाती है। उनमे गिरावट नहीं आने देती। उनके अनुसार लखनऊ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि, लखनऊ के बाहर से आया कोई भी युवा या व्यक्ति इसे 2 वर्षों के भीतर ही अपना लेता है। और इसमें सराबोर हो जाता है।

फेस्ट मे संवाद कार्यक्रमों के साथ पुस्तक प्रदर्शनी भी छात्र-छात्राओं के लिए लगाई गई है, जिसका उद्घाटन का श्री सुधीर मिश्रा एवं श्री वी.एन. मिश्र ने फीता काटकर किया। पुस्तक मेले में देश और प्रदेश के मशहूर प्रकाशनों की पुस्तके प्रदर्शित की जा रही है। छात्र-छात्राओं में इन बुक स्टालों के प्रति एक अलग तरह का उत्साह देखने को मिला।

कार्यक्रम के समापन पर श्री जी सी शुक्ला, मंत्री प्रबंधक ने सभी अतिथियों के प्रति अपना आभार व्यक्त किया।

प्रो पायल गुप्ता ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस अवसर पर अनेक गणमान्य अतिथि, महाविद्यालय के शिक्षक एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

श्री जय नारायण मिश्र पी. जी. कॉलेज लखनऊ में चल रहे दो दिवसीय, केकेसी लिट फेस्ट 2024 का समापन, मुख्य अतिथि, श्री जी सी शुक्ला, मंत्री प्रबंधक महाविद्यालय प्रबंध समिति के कर कमलो द्वारा, मां सरस्वती प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर हुआ।

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि, लिट़्फेस्ट में छात्र-छात्राओं की प्रतिभागिता ने उन्हें उत्साहित किया है। और भविष्य में इस तरह के मूल्यवर्धक आयोजन किए जाते रहेंगे।

महाविद्यालय प्राचार्य, प्रो विनोद चंद्रा ने इस अवसर पर अतिथियों का स्वागत दुशाला एवं स्मृति चिन्ह देकर किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि, लिट़्फेस्ट का उद्देश्य, छात्र-छात्राओं को लखनऊ और उससे जुड़े अनेक रोचक पहलुओ से रूबरू कराने के लिए आयोजित किया गया है। लिट फेस्ट, छात्र-छात्राओं की बौद्धिक प्रतिभा में इजाफा करके जाएगा।

लिट फेस्ट के दूसरे दिन आयोजित सत्र में श्री नदीम हसनैन, प्रख्यात मानव शास्त्री एवं लखनऊ विशेषज्ञ के साथ लखनऊ की तहजीब विषय पर प्रो हिलाल अहमद ने संवाद किया. इस अवसर पर श्री नदीम हसनैन ने कहा कि, आज के लखनऊ में 60 से 70% की आबादी ऐसी है जो लखनऊ से रूटेड नहीं है।

जिन लखनऊ वालों की आप बात कर रहे हैं, उनकी संख्या इस समय शहर में कम है। उन्होंने कहा की पुरानी लखनऊ की संस्कृति के लिए नॉस्टैल्जिया होना जरूरी है। उन्होंने अपना उदाहरण देकर के बताया कि वो 50 के दशक में लखनऊ में आए और यही के होकर के रह गए। यहां से रूटेड ना होने के बावजूद उनका लखनऊ से एक अलग तरह का लगाव है। उन्होंने बताया कि 1722 से 1956 तक लखनऊ में नवाबी काल रहा है। यहां की साझी संस्कृति को बढ़ाने में उन्होंने अपना बहुत योगदान दिया। उन्होंने कभी भी यहां के लोगों से कोई भेदभाव नहीं किया। उदाहरण के लिए होली पर्व को खुल करके और जमकर बनाने के लिए महल से प्रेरणा दी जाती थी। साझी संस्कृति के विकास में नवाबो के योगदान के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने अलीगंज के हनुमान जी मंदिर का उदाहरण दिया, जिसे अली बेगम ने बनवाया था और हिंदुओं ने बेगम के सम्मान में मंदिर के छत पर स्वयं ही चांद तारा बनाया था। अलीगंज का एक बार काफी पहले नाम बदलने की बात हुई तो यहां मंदिर के महन्तो ने हड़ताल कर दी थी और नाम बदलने का विरोध किया। लखनऊ की जुबान और यहां के आम लोगों के लखनऊपने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि लखनऊ के आमजन मे एक वर्ग ऐसा है जो आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ होने के बावजूद उनमे लखनऊ की रवायत मिलती है।

श्री अली हसनैन ने कहा कि आज भी लखनऊ मे ऐसे कहार है, ब्रास बैंड वाले गुरखुन वाले है जिनके तौर तरीकों में लखनऊ की शाइस्तगी मिलती है किंतु सब में नहीं। उन्होंने एक बार का एक किस्सा बताया कि जब एक खीरा बेचने वाले ने पतले खीरे के दाम बहुत महंगे लगाय तो उन्होंने इस पर सवाल किया। खीरे वाले ने कहा कि, बाबूजी अभी यह अल्हड़ बतिया है दाम तो ज्यादा होंगे। यह सुनकर उनका साहित्यिक भाव जाग गया और उन्होंने खीरे वाले को दुगना दाम दिया। श्री हसनैन ने कुल्फी वाले के बारे में बताया जो बहुत अदब से कुल्फी बेचता था और कहता था कुल्फी खा लीजिए बाबूजी न जाने किसकी याद में घुली जा रही है। उन्होंने बताया कि वाजिद अली शाह ने लखनऊ की साझी संस्कृति को बढ़ाने में काफी योगदान दिया। स्वतंत्रता संग्राम के आरंभ में जब ब्रिटिश हुकूमत ने उनकी गिरफ्तारी की तो सभी धर्म के लोग विचलित हुए थे और उन्होंने नवाब के लिए प्रार्थना की थी कि, कृपा करो रघुनंदन, हुजूर जाते हैं लंदन।

फेस्ट के दूसरे सत्र में प्रो अनिल त्रिपाठी ने श्री अतुल तिवारी, स्क्रिप्ट राइटर एवं मशहूर अभिनेता के साथ लखनऊ की फिल्में एवं रंगमंच विषय पर संवाद किया।

श्री अतुल तिवारी ने बड़ी ही आत्मीयता से सभी सवालों का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि केकेसी महाविद्यालय उनके जेहन में है और उन्होंने इसको बचपन से ही देखा है। उन्होंने बताया कि उनकी पैदाइश यही लखनऊ में हुसैनगंज में एक कम्यून मे हुई। उन्होंने छात्र-छात्राओं से अपने अपने बचपन के जीवन और उसमें विविधताओं के बारे में बताया। उन्होंने छात्र-छात्राओं से बड़े ही विनोद पूर्ण शैली में संवाद किया और कहा कि किसी भी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनने में उनको अब डर लगता है। क्योंकि 3 ईडियट्स फिल्म में वह एक बार मुख्य अतिथि बने थे और वहां जो कुछ भी हुआ उसके बाद मुझे बड़ा संभाल कर मुख्य अतिथि बनना पड़ता है। उन्होंने बताया कि, उनकी मां एक डॉक्टर थी। और उन्हें घर के बगल में स्थित आकाशवाणी केंद्र में प्रशिक्षण और परफॉर्मेंस के लिए प्रेरित करती थी। वहां आते जाते उन्होंने बच्चों के कार्यक्रमों के लिए कई प्रस्तुतियो के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया और यही से उनके अंदर अभिनय जगत, कथा और कहानी को लेकर भाव उपजने लगे। इंटर करने के बाद उनका चयन राष्ट्रीय स्कूल आफ ड्रामा में हुआ किंतु शीघ्र यह घोषणा होने पर कि अब ग्रेजुएशन के बाद ही एनएसडी में प्रवेश मिल सकेगा। उन्होंने बताया कि एनएसडी के बाद वह मुंबई अपने गुरु के वी सुवन्ना के विषय में बताया जिन्होंने उनकी सोच और दिशा को परिमार्जित किया तथा गांव में थिएटर के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि एनएसडी के बाद लेखन, कहानी और पटकथा लेखन में ही अपना करियर चुना और फिल्म अभिनेता बनने का प्रयास नहीं किया। आरंभ के 13 वर्षों तक उन्होंने गांव में थिएटर किया। उन्होंने राजकुमार हीरानी की फिल्म 3 ईडियट्स और विश्वरूपम में कमर्शियल किया। फिल्म अभिनेता के तौर पर ख्याति मिली। उन्होंने कहा कि कमर्शियल इतना बुरा शब्द नहीं। यह भी एक विधा का स्वरूप है। उन्होंने कहा कि हम चाहे जितनी भी अच्छी कृति बनाएं मगर हाल में लोगों का आना जरूरी है। अगर लोग हाल में नहीं आएंगे तो मैं किसको दिखाऊंगा। उन्होंने एक प्रश्न के जवाब में बताया कि जावेद अख्तर ने सिर्फ एक बार अभिनय किया है। कब तक पुकारू सीरीज मैं उन्होंने जावेद अख्तर के साथ अभिनय किया। उन्होंने बताया कि उनका जीवन बड़े-बड़े क्रांतिकारियो और उनके सहयोगियों के बीच में गुजरा है। उन्होंने केकेसी स्कूल के पास बने रेलवे पुल के छत्ते के बारे में बताया कि काकोरी कांड के नायकों को जब जीपीओ में बने कोर्ट में सुनवाई के लिए ले जाया जा रहा था तब यही छत्ते के पुल के पास लोगों ने उनको छुड़ाने की कोशिश की थी।

अपना अनुभव साझा करते हुए श्री अतुल तिवारी ने बताया कि राज बब्बर ने उनसे एक पंजाबी फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने को कहा था जो की बहुत ही हिट हुई थी। अभिनेता राज बब्बर के साथ अपने जुड़े संस्मरणों को भी उन्होंने सुनाया और बताया कि राज बब्बर प्रत्येक वर्ष एक पंजाबी फिल्म मुफ्त में करते हैं। ऐसा करके उन्हें संतुष्टि मिलती है। राज बब्बर ऐसे अभिनेता थे जो एनएसडी से आए थे और सीधे फिल्म अभिनेता बने थे। उन्होंने बताया कि उन्होंने पटकथा लेखन के साथ-साथ कई बायोपिक भी लिखे। महाविद्यालय के युवा छात्र-छात्राओं के लिए संदेश के बारे में उन्होंने कहा कि, आजादी है बेश कीमती और गुलामी है जिल्लत, उन्होंने कहा कि फिल्म इंडस्ट्री में अगर आना है तो लेखन, स्क्रिप्ट राइटिंग, पटकथा लेखन में अपने आप को माहिर बनाएं। क्योंकि इंडस्ट्री में आज उनकी मांग सबसे ज्यादा है और सप्लाई कम। अभिनेता बनने तो सभी आते हैं।अभिनेता की कुर्सी वैसे ही है, जैसे रिलायंस का शेयर जिसे 1 लाख लोग अप्लाई करते हैं और केवल 5 या 6 लोगों को मिलता है। उन्होंने कहा कि भीड़ से अलग हटिए और फिल्म निर्माण से जुड़े विभिन्न कौशलों को निखारिए और इस लाइन मैं आने से पहले इसको समझिए समझिए, तालीम हासिल करिए और फिर अभिनय की तरफ कदम बढाइये।

अभिनेता अतुल तिवारी की लोकप्रियता छात्र छात्रो के बीच देखने को मिली।

 

फेस्ट के आखिरी सत्र में दास्तान गोई के लिए मशहूर मोहम्मद फारूकी एवं दारेन शहीदी ने अद्भुत शैली में दास्तान गोई की। मोहम्मद फारूकी ने, श्री लाल शुक्ल के लिखे, राग दरबारी उपन्यास के कुछ अंशो पर दास्तान गोई की। जिसको छात्र-छात्राओं, शिक्षकों एवं सभी दर्शकों ने खूब सराहा तथा खूब तालियां बजाई। उन्होंने शिक्षा जगत में विषमताओं के बीच उभर रहे अनेको हास्य से भरपूर घटनाओं का उल्लेख अपनी दास्तान गोई में किया। जिसे सुनकर सभी भाव विभोर हो गये। महाविद्यालय उप प्राचार्य प्रो के के शुक्ला ने लिट फेस्ट 2024 के सफल आयोजन में सहयोग के लिए सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।

इस अवसर पर अनेको गण मान्य अतिथिगण, महाविद्यालय के शिक्षक कर्मचारी एवं बड़ी संख्या में छात्र छात्र उपस्थित हुए

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