भगवान श्री रामकृष्ण देव जी के 188वां जन्मोत्सव

दिनांक 12 मार्च, 2024 से चल रहे 6 दिवसीय भगवान श्री रामकृष्ण देव जी के 188वां जन्मोत्सव समारोह के छठें एवं अन्तिम दिन रविवार, 17 मार्च, 2024 को निम्नलिखित कार्यक्रमों का आयोजन रामकृष्ण मठ पर सम्पन्न हुआ।

 

*प्रातः 7:15 बजे स्वामी मुक्तिनाथानन्दजी महाराज द्वारा (ऑनलाइन) सत् प्रसंग हुआ तथा प्रातः 8:30 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक पंजीकृत भक्तों के लिए आध्यात्मिक शिविर का आयोजन किया गया* जिसमे लगभग 500 युवाओं, भक्तों एवं विवेकानन्द कॉलेज व स्कूल ऑफ नर्सिंग की छात्राओं ने तथा विवेकानंद पाली क्लीनिक के पैरामेडिकल छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। जिसकी शुरूआत मौन प्रार्थना, वैदिक मंत्रोच्चारण, पुष्पांजलि व नामावली “हे प्रेमरूप श्री रामकृष्ण” के साथ हुआ। निर्देशित ध्यान रामकृष्ण मठ, लखनऊ के अध्यक्ष, स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज के नेतृत्व में सम्पन्न हुआ, जहां पर स्वामी जी ने बताया कि ध्यान क्यों और कैसे करें? तत्पश्चात सामूहिक रूप से ‘श्री गुरू प्रार्थना’ रामकृष्ण मठ के स्वामी इष्टकृपानन्द के नेतृत्व में की गयी।

मंदिर के पूर्व प्रांगण में जलपान के उपरांत द्वितीय सत्र में उद्बोधन गीत रामकृष्ण मठ के स्वामी पारगानन्द ने प्रस्तुत किया। उस दौरान तबले पर उनका संगत भातखण्डे संगीत संस्थान, लखनऊ के श्री शुभम राज तथा खोल पर संगत श्री गोपाल भट्टाचार्य ने दिया। इसके उपरान्त उत्तर प्रदेश-उत्तराखण्ड रामकृष्ण विवेकानन्द भाव प्रचार परिषद के पूर्व संयोजक डा० हीरा सिंह ने ‘श्री रामकृष्ण वचनामृत से पाठ किया।

तत्पश्चात *रामकृष्ण मिशन आश्रम, विशाखापत्तनम के स्वामी गुणेशानन्द्र जी द्वारा ‘श्री रामकृष्ण देव के अवतार की विशेषता विषय पर प्रवचन दिया* गया। प्रवचन के उपरान्त मातृ गीत की प्रस्तुति स्वामी पारगानन्द द्वारा दी गई उस दौरान तबले पर उनका संगत भातखण्डे संगीत संस्थान, लखनऊ के श्री शुभम राज तथा खोल पर संगत श्री गोपाल भट्टाचार्य ने दिया तदोपरान्त सारदा संघ, लखनऊ की श्रीमती रीना मल्लिक ने ‘श्री माँ की बातें’ से पाठ किया।

 

*रामकृष्ण मठ, लखनऊ के अध्यक्ष, स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज ‘श्री रामकृष्ण महिमा विषय पर प्रचवन देते हुये कहा कि* रामकृष्ण परमहंस ने ‘जितने मत, उतने पथ के मूल सिद्धांतों को अपनाया और जीया। यह ‘सार्वभौमिक धर्म अपनाना मानवता की सेवा और इसके मूल में आध्यात्मिकता का अभ्यास करने पर निर्भर करती है। उन्होंने विश्व को यह संदेश दिया कि धर्म को विचारों का विषय मत बनाओं। हो सके तो उसकी सीधी अनुभूति के प्रयास करो। सभी धर्म एक ही ईश्वर की ओर ले जाने वाले अनेक मार्ग हैं, उसे उन्होंने जीवन में उतारा।

 

श्री रामकृष्ण कहा करते थे कि किसी अवतार को पहचानना अत्यंत कठिन है, उदाहरण के तौर पर वे कहते थे कि केवल बारह ऋषि ही रामचन्द्र को पहचान सके थे। उन्होंने एक नौकर का उदाहरण दिया, जिसे उसके मालिक ने बाजार में ले जाकर उसकी कीमत आंकने के लिए एक हीरा दिया था। नौकर उसे एक बैंगन विक्रेता के पास ले गया, जिसने उसे इसके बदले में नौ सेर बैंगन देने की पेशकश की। फिर एक कपड़ा व्यापारी के पास गया, जिसने कहा कि वह हीरे के लिए नौ सौ रुपये देगा। अंत में, उसके मालिक ने उसे एक जौहरी के पास भेजा, जिसने हीरे को देखते ही तुरंत उसकी कीमत पहचान ली और कहा, ‘मैं तुम्हें इसके लिए एक लाख रुपये दूंगा।

 

एक ऐसा समय भी आया था जब सभी धर्म पतित हो गये थे। उस समय सभी धर्मों को फिर से स्थापित करने के लिये श्रीरामकृष्ण देव आविर्भूत हुए थे। उन्होंने केवल हिन्दू धर्म को ही स्थापित नहीं किया था, बल्कि इस्लाम धर्म, ईसाई धर्म, सिख धर्म सभी उपासना मार्गों से धर्म लाभ करने के बाद कहा था ‘जितने मत उतने पथ।’ इसीलिये स्वामी विवेकानन्द ने ठाकुर को अवतार वरिष्ठ घोषित करते हुए प्रणाम-मन्त्र की रचना की थी।

 

जब लकड़ी का बड़ा भारी कुन्दा पानी पर बहता है तब उसपर चढ़कर कितने ही लोग आगे निकल जाते हैं, उनके वज़न से वह डूबता नहीं। किन्तु सड़ियल लकड़ी पर एक कौआ भी बैठे तो वह डूब जाती है। इसी प्रकार जिस समय अवतार महापुरुष आते हैं उस समय उनका आश्रय ग्रहण कर कितने लोग तर जाते हैं, किन्तु सिद्ध पुरुष काफी श्रम करके किसी तरह स्वयं तरता है। सच्चिदानन्द का घनीभूत समुद्र क्या धरती पर अवतरित हो सकता है? इसीलिये स्वामी विवेकानन्द ने श्रीरामकृष्ण को अवतार-वरिष्ठ कहा है।

 

कार्यक्रम का समापन स्वामी पारगानन्द व अन्य भक्तों द्वारा समूह में गाये भजन के साथ हुआ उस दौरान तबले पर संगत शुभम राज ने तथा खोल पर संगत श्री गोपाल भट्टाचार्य ने दिया। रामकृष्ण मठ के स्वामी रमाधीशानन्द ने स्वामी विवेकानन्द रचनावली से पाठ किया तथा प्रश्नोत्तर परिचर्चा में स्वामी मुक्तिनाथानन्द एवं स्वामी गुणेशानन्द से युवाओं ने अपने अपने प्रश्नो के उत्तर पूछे तथा अपनी जिज्ञासा को शान्त किया। आध्यात्मिक शिविर का समापन स्वामी पारगानन्द द्वारा समूह में गाये श्री रामकृष्ण शरणम् गीत के साथ हुआ। तत्पश्चात उपस्थित सभी भक्तगणों, युवाओं एवं छात्राओं के मध्य प्रसाद वितरण किया गया। उपरोक्त कार्यक्रम के सूत्रधार विवेकानंद युवा संघ के श्री हरि ओम थे।

 

*सायं 4:00 बजे रामकृष्ण मठ, लखनऊ के गदाधर अभ्युदय प्रकल्प के बच्चों द्वारा योगासन प्रदर्शित* किया गया। स्वामी मुक्तिनाथानन्दजी महाराज ने बताया कि योगासन करने से हम सभी प्रकार की बीमारियों से तथा व्याधियों से बच सकते हैं।

 

*सायं 5:00 बजे से कोलकाता के प्रसिद्ध जादूगर स्वारिथ मंजीत एवं दीपक कुमार ने मनमोहक जादू का मंचन मंदिर सभागार में किया*। जिसको देखकर लगभग 500 दर्शक मन्त्रमुग्ध हो गये। जिसमें विशेष रूप से बच्चों को मठ के अलौकिक प्रागंण में जादू की कला से सक्षात रूबरू होने का मौका मिला जिससे बच्चों ने जमकर इस जादुई कला के प्रदर्शन का आनन्द उठाया। जादूगर लोग ने ऐसे ऐसे जादूई करतब दिखाये की लोग दातो तले उगली दबाने को विवश हो गये।

 

संध्या आरती के उपरान्त सायं 7:20 बजे मठ के सभागार में *”भक्त वत्सल श्री रामकृष्ण’ विषय पर एक संगीतमय चित्रण (लीला गीति) श्रीरामकृष्ण सेवा समिति, लखनऊ के सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किया गया।* लीलागीति की लिपि और साथ ही भक्तों द्वारा गाये गए मधुर भक्ति गीतों ने भावुकता के साथ श्रोत्रागणों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

 

तत्पश्चात मुख्य मंदिर के पूर्व प्रांगण में मनमोहक आतिशबाजी के साथ उपस्थित सभी भक्तों को प्रसाद वितरण करते हुये भगवान श्री रामकृष्ण देव जी का 188वां जन्मोत्सव का समापन सम्पन्न हुआ।

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