सुशासन व विकसित भारत की संकल्पना पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

अटल सुशासन, पीठ लोक प्रशासन विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा 20, 21 मार्च 2024 को राष्ट्रीय संतुष्टि का आयोजन किया गया।

 

प्रथम दिन विभाग के डी पी ए सभागार में आयोजित संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्तियों ने इस अवसर की शोभा बढ़ाई। कार्यक्रम की शुरुआत सुबह 9:30 बजे उपस्थित लोगों के पंजीकरण के साथ हुई, सुबह 10:30 बजे दीप प्रज्ज्वलन और वंदना के साथ माहौल उत्साह से भर गया, जो आगे की ज्ञानवर्धक यात्रा का प्रतीक है। इसके बाद, विभाग अध्यक्ष प्रो नन्द लाल भारती ने अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया और इसके बाद विभाग के अन्य शिक्षक यथा डॉ वैशाली सक्सेना, डॉ नंदिता कोसल, डॉ श्रद्धा चंद्रा ने अतिथियों का स्वागत किया।

सत्र के प्रारम्भ मे संगोष्ठी के सोवीनियर का विमोचन किया गया जिसमे विभिन्न क्षेत्रों के शिक्षको एवं शोधर्थियों के शोधपत्रों के सारांशों का प्रकाशन किया गया

 

चौधरी देवी लाल विश्वविद्यालय, सिरसा, हरियाणा के कुलपति प्रो. अजमेर सिंह मलिक उद्धघाटन सत्र के मुख्य अतिथि थे , उन्होंने सुशासन के सार और विकसित भारत के निर्माण में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला. उन्होंने सुशासन की पश्चिमी अवधारणा को भारतीय परिपेक्ष में अपने पर बल देते हुए सुशासन के 6 नए आयाम को बताया और विभिन्न देशों का उदाहरण देते हुए सुशासन की अवधारणा को समझाया.

 

 

इस सेमिनार के सम्मानित अतिथि एबीवीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. राज शरण शाही थे. उन्होंने प्राचीन काल से आज तक की भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व की अर्थव्यवस्था में योगदान को रेखांकित करते हुए अटल जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला एवं सुशासन पर अटल जी के दृष्टिकोण को समझाया.

 

सेमिनार के विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर संजय सिंह डॉक्टर राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय लखनऊ के पूर्व कुलपति है. उन्होंने सुशासन के एक आयाम के रूप में व्यक्तिगत नैतिकता पर प्रकाश डाला और इमरजेंसी के दौर का उदाहरण दिया तथा सुशासन में सरकारी मशीनरी को स्पष्ट और पारदर्शी बनाने पर बल दिया.

 

उद्धघाटन सत्र का समापन लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय के विचारोत्तेजक अध्यक्षीय भाषण से हुआ, जिसमें उन्होंने सुशासन प्रथाओं को बढ़ावा देने में शिक्षाविदों के महत्व को रेखांकित किया। तथा उन्होंने प्रशासन प्रबंधन एवं राजनीति के क्षेत्र उभयनिष्ठ बिंदुओं को रेखांकित करते हुए कि यह तीनों विषय सुशासन के बिंदु पर आकर एक हो जाते है.

 

उद्धघाटन सत्र का समापन संयोजक, प्रो. और लोक प्रशासन विभाग के प्रमुख डॉ. एन.एल.  भारती के द्वारा अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापन और राष्ट्रगान के साथ हुआ।

 

यह संगोष्ठी मुख्यतः चार विषय बिंदुओं पर केंद्रित थी जिसमें से मुख्य रूप से 2047 तक भारत को विकसित बनाने की रणनीति, शासन और नेतृत्व के भारत में प्रतिमान , तीसरा सतत विकास की रणनीति कैसी हो , और चौथा भारत में प्राचीन काल से अभी तक के मूल्यों परंपराओं में सुशासन के चिन्ह को खोजना।

 

20 मार्च को सेमिनार मे दो तकनिकी सत्रों का भी आयोजन किया गया. पहले सत्र के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष क्रमशः नरेंद्र कुमार (जे एन यू) डॉ प्रीति चौधरी (BBAU ). इस सत्र में 20 से अधिक शोधार्थियों ने अपने-अपने शोध पत्रों को प्रस्तुत किया.

सेमिनार के दूसरे तकनीकी सत्र की शुरुआत 3:00 बजे हुई. इस सत्र के अध्यक्ष प्रोफेसर आई डी मिश्रा तथा सह अध्यक्ष डॉ अदिति त्यागी थीं जो की पटना यूनिवर्सिटी से आयीं थीं. इस सत्र में भी 50 से अधिक शोध पत्रों को प्रस्तुत किया गया।

 

21 मार्च को राष्ट्रीय संगोष्ठी का दूसरा दिन था जिसमे भी दो सत्रों का आयोजन किया गया। पहला तकनीकी सत्र था जिसके अध्यक्ष डॉ यू बी सिंह, पूर्व संयुक्त निर्देशक, लखनऊ उत्तर प्रदेश तथा प्रो. ओ पी बी शुक्ला, अध्यक्ष लोक प्रशासन विभाग, बी बी ए यू, लखनऊ थे।

 

इसके बाद सेमिनार के दूसरे तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया जिसके अध्यक्ष प्रो. पी एन गौतम, पूर्व प्रोफेसर लोक प्रशासन विभाग, हिमांचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला, हिमांचल प्रदेश तथा उपाध्यक्ष प्रो. गोपाल प्रसाद, राजनीति विज्ञान विभाग, डी डी यू गोरखपुर थे।

 

इसके बाद सेमिनार का तीसरा वेलिडेटरी सत्र का आयोजन किया गया जिसके अध्यक्ष लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. अरविंद अवस्थी थे। इस सत्र मुख्य अतिथि प्रो. मनोज दिक्षित, कुलपति महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर (राजस्थान) थे। उन्होंने सुशासन के लक्ष्यों को सतत विकास लक्ष्यों से जोड़ते हुए नीति क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों को रेखांकित किया।सेमिनार के अंतिम सत्र में डॉक्टर वैशाली सक्सेना ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

समापन सत्र की अध्यक्षता लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रोफेसर अरविंद अवस्थी जी ने की जिन्होंने सुशासन के लिए नेतृत्व में दूर दृष्टि की उपयोगिता के महत्व को रेखांकित किया।

 

दो दिनों में जोरदार चर्चा और बौद्धिक आदान-प्रदान के लिए एक मंच बनने का वादा करती है, क्योंकि पूरे भारत से विशेषज्ञ और विद्वान विशेष रूप से हरियाणा, राजस्थान और बिहार से एक समृद्ध और समावेशी भारत की दिशा तय करने के लिए एकत्रित हुयें

दो दिवसीय इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का निष्कर्ष यह रहा कि भारत को सुशासन की अपनी प्रथाओं को विकसित करना होगा जिसमें भारत के संदर्भ से जुड़े मानको को स्थापित किया जाए जिससे भारत के सरकार के अंत्योदय के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके

 

 

सेमिनार का समापन सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया जिसमें विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के छात्र-छात्राओं द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों जैसे कि गायन, कविताओं और नृत्यों को मनमोहक ढंग से प्रदर्शित किया गया।

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