पूज्य पंकज जी महाराज 82 दिवसीय जनजागरण यात्रा
चैपारण/करमा (हजारीबाग) 8 मार्च। देश में करोड़ो लोगों के हाथों से तीर-तलवार, बन्दूकें छुड़वाकर, उनके हाथों में भगवान के भजन करने की माला पकड़ाने वाले परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के उत्तराधिकारी एवं जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था, मथुरा के रा. अध्यक्ष पूज्य पंकज जी महाराज 82 दिवसीय जनजागरण यात्रा लेकर झारखण्ड प्रदेश के अंतिम पड़ाव के लिये कल सायंकाल अपने बहत्तरवें पड़ाव पर ग्राम करमा पधारे। स्थानीय भाई-बहनों ने फूल-मालाओं, पुष्प वर्षा, कलशों तथा वाद्ययन्त्रों से काफिला यात्रियों का भावपूर्ण स्वागत किया।
आज यहां सत्संग समारोह का आयोजन हुआ। सत्संग सन्देश सुनाते हुये संत पंकज जी ने कहा बड़े ही सौभाग्य से हम लोगों को ये मानव तन मिला। बड़े से बड़े देवता भी इस मानव तन को पाने के लिये तरसते हैं क्योंकि इसमें चैरासी लाख योनियों से, उन नर्कों से निकलने का दरवाजा है। वह केवल मनुष्य का शरीर है। इसी मनुष्य मन्दिर में बैठकर हम उस परमात्मा की भक्ति कर सकते हैं। इसीलिये सन्तों महात्माओं ने इस पंच भौतिक शरीर को सच्चा हरि मन्दिर कह करके याद किया। ‘‘हरि मन्दिर यह शरीर है, ज्ञान रतन प्रकट होय।’’ जब भी वह मालिक मिलेगा इसी मनुष्य रूपी मन्दिर में मिलेगा। मुसलमान फकीरों ने इसे कुदरती काबा कह करके याद किया। गुरु नानक साहब ने इसे नर नारायणी शरीर कह करके याद किया। इसी पंच भौतिक शरीर को ईसामसीह ने टेम्पल आफ लिविंग गाड कह करके याद किया। यानि जिन्दा ईश्वर का मन्दिर कहा। परमात्मा जब भी मिलेगा तुम्हें तुम्हारे अन्दर मिलेगा। यही कबीर साहब ने कहा है कि ’’ज्यों तिल माही तेल है, ज्यों चकमक में आग। तेरा साईं तुझ में, जाग सके तो जाग।‘‘ आपकी धर्म पुस्तकों में भी लिखा है कि ’’मोको कहाँ ढूढ़े रे बन्दे, मैं तो तेरे पास में। ना तीरथ में ना मूरत में, मैं तो हूं विश्वास में।।‘‘
उन्होंने कहा अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस हरि मन्दिर में जा करके हम उस परमात्मा को कैसे प्राप्त करेंगे। इसके लिये महात्माओं ने इस कलयुग में केवल तीन साधन बतलाये पहला-सुमिरन यानि नाम का मौन जाप, दूसरा ध्यान यानि दोनों आंखों को बन्द करके अन्दर में एकाग्र होकर दिव्य दृष्टि खोलना तथा तीसरा भजन यानि दोनों आंखों दोनों कान बन्द करके ऊपर की तरफ ऊँचा ध्यान देकर देववाणी, अनहदवाणी, कलमा को सुनना, छांटना और उसी में लय होना। पे्रमी भाई-बहनों! यह सुरत शब्द योग (नाम योग) की साधना है। इस नाम योग की साधना को करने का तरीका भी बताया और कहा कि हमारे गुरु महाराज ने 116 वर्ष की आयु तक अथक परिश्रम करके इसी रास्ते पर करोड़ों लोगों को लगाया। उनका जीवन बदल कर बाल्मीकि सरीखा बना दिया और कहा कि यह ‘जयगुरुदेव’ नाम उस प्रभु का जगाया हुआ नाम है। संसार के सभी जीव यदि इस नाम की जहाज पर एक साथ बैठ जांय तो भी यह जहाज सबको पार कर देगा। आप लोग कभी भी इस जयगुरुदेव नाम की परीक्षा कर सकते हैं।
महाराज जी ने देश के युवाओं पर चिन्ता व्यक्त करते हुये यह कहा कि युवाओं के पास शिक्षा की डिग्री तो है लेकिन संस्कार नहीं है और संस्कार कोई एम.ए.बीए. की डिग्री से नहीं मिलता है। संस्कार मिलता है तो महात्माओं के बचनों से, संस्कार मिलता है। महात्माओं के सत्संग से अपने साथ बच्चों को भी लेकर सत्संग में आया करो। यही बच्चेे मां, बाप का नाम रोशन करेंगे और यही बच्चे देश का नाम रोशन करेंगे। ये देश की धरोहर हैं। इनको शाकाहारी बनाओ-सदाचारी बनाओ जिससे एक अच्छे समाज का निर्माण हो सके।
उन्होंने आगामी 24 से 26 मार्च तक तक जयगुरुदेव आश्रम मथुरा उ.प्र. में होने वाले होली सत्संग मेला में पधारने का निमन्त्रण दिया तथा बताया कि मथुरा में वरदानी जयगुरुदेव मन्दिर बना है जहां बुराईयां चढ़ाने पर मनोकामना की पूर्ति होती है। जिला-इटावा उ.प्र. में तह. भरथना के गांव खितौरा धाम में बाबा जी की पावन जन्मभूमि है यहां पर भी भव्य वरदानी मन्दिर बना है। यहां सभी सम्प्रदायों के लोग आते हैं। उन्होंने संस्था द्वारा संचालित धर्मादा कार्यों को भी बताया। शान्ति व सुरक्षा व्यवस्था में पुलिस प्रशासन ने सहयोग किया।
इस अवसर पर संस्था के महामन्त्री बाबूराम यादव, जयगुरुदेव आश्रम के प्रबन्धक सन्तराम चैधरी, झारखण्ड प्रदेश के अध्यक्ष रामचन्द्र यादव, बिहार प्रान्त के अध्यक्ष मृत्युन्जय झा, दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष विजय पाल सिंह, अरुण प्रसाद स्वर्णकार, जगेश्वर प्रसाद केशरी, कैलाश साव, मोहम्मद अशरफ अली, प्रकाश यादव, नागेश्वर साव, इन्द्रदेव यादव, धर्मदेव यादव, बदायूं संगत के अध्यक्ष उपदेश सिंह, पप्पू शर्मा, डा. ओम सरन, सुरेन्द्र नेता आदि उपस्थित रहे।
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