‘पाकिस्तान एक सैन्य राज्य : एक स्पष्टीकरण’ पर व्याख्यान

04.04.2024 को मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र एवं अन्तर सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित द्वि-दिवसीय विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला के द्वितीय दिवस के विशिष्ट व्याख्यान में कार्यक्रम मुख्य वक्ता के चर्चित राजनीतिक विज्ञानी और विचारक तथा स्टॉकहोम विश्वविद्यालय, स्वीडन के एमिरेट्स प्रोफेसर इश्तियाक अहमद ने आज के विषय ‘पाकिस्तान एक सैन्य राज्य : एक स्पष्टीकरण’ (Pakistan a Garrison State : An Explanation) पर अपने व्याख्यान में कहा कि मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट, मूल अधिकार का करांची घोषणापत्र और पूना पैक्ट इन तीनों का भारत के संविधान पर गहरा प्रभाव पड़ा और आगे चलकर भारत के विकास की यह आधार भूमि बना। पाकिस्तान के निर्माण के प्रारंभ से जिन्ना ने ब्रिटिश सरकार को यह कहा कि पाकिस्तान का निर्माण एशिया में कम्युनिस्ट प्रसार को रोकेगा इसीलिए वे पाकिस्तान के निर्माण में उनकी मदद करें। पाकिस्तान सदैव अपने वैदेशिक मामलों के लिए पश्चिमी ताकतों पर निर्भर रहा। सोवियत संघ का भय दिखाकर पाकिस्तान सदैव अमेरिकानीत गठबंधन पर निर्भर रहा जबकि भारत ने 1951 में गुटनिरपेक्ष बने रहने का निर्णय लिया। इन सब कारणों से भारत का एक भिन्न और स्वतंत्र नीतिपरक दृष्टि से विकास हुआ। स्वतन्त्रता के बाद भारत में एक व्यवस्थित राजनीतिक पार्टी के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस थी जबकि पाकिस्तान की मुस्लिम लीग एक व्यस्थित रूप से गठित राजनीतिक दल नहीं था। मोहम्मद अली जिन्ना की मौत के बाद उस पार्टी को आगे ले जाने के लिए कोई प्रभावशाली नेतृत्व नहीं था और यही वजह थी कि कुछ ही समय बाद पाकिस्तान के प्रशासन पर सेना का प्रभाव बढ़ाने लगा। प्रारम्भ से ही मुस्लिम लीग ने यह नारा दिया कि जो मुस्लिम पाकिस्तान का समर्थन नहीं करेगा वह वास्तविक मुस्लिम नहीं है, यह विचार एक तरह का विभाजनकारी विचार था और व्यावहारिक रूप से दो भागों पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में बंटे पाकिस्तान के निर्माण और विकास के लिए यह उपयुक्त नहीं था। लियाकत अली खान की मृत्यु के बाद पाकिस्तान में कोई ऐसा महत्वपूर्ण नेता नहीं था जो सत्ता को ठीक से चला सके और बाद में जनरल अयूब खान के शासन में आने के बाद सेना का पाकिस्तान की सत्ता पर प्रभाव बढ़ता गया। बाद में एशिया की भौगोलिक-राजनीतिक कूटनीति में पाकिस्तान और पाकिस्तान की सेना का प्रभाव बढ़ा जिसने वहाँ धार्मिक कट्टरता को भी बढ़ावा दिया। मेरा मानना है कि यदि भारत और पाकिस्तान का सीमा विवाद सुलझ जाय तो यह पूरे दक्षिण एशिया के विकास और शांति के लिए लाभकारी होगा। एक प्रश्न के उत्तर में आपने कहा कि रूजवेल्ट के निधन के बाद जब विश्व में दो ध्रुव बन गए थे तो भारत ने किसी भी गुट के साथ न जुड़कर अपनी एक स्वतंत्र पहचान बनाई जो यहाँ की विशेषता और मजबूती का आधार बनी। एक अन्य प्रश्न के जवाब में आपने कहा कि अल्पसंख्यकों की स्थिति पाकिस्तान में तब तक अच्छी नहीं हो सकती है जब तक कि धर्म को राज्य के निर्माण का आधार बनाया जाता रहेगा, इसलिए मजहबी कट्टरता के कारण पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति सदैव खराब रहेगी। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. दीपक मलिक ने कहा कि इश्तियाक अहमद का दो दिन का व्याख्यान बहुत ही रोचक और सूचनापरक था जिससे हम सभी लाभान्वित हुए। उन्होने खोये हुए दस्तावेज को खोजकर अपना शोध कार्य किया है यह बहुत की मेहनत का कार्य है। इनका पंजाब पर काम बहुत ही अच्छा है और उन्होंने बहुत ही नजदीक से वहाँ की स्थिति को परखा है। मेरा मानना है कि भारत का साम्प्रदायिक बंटवारा बहुत ही दुखद था। धन्यवाद ज्ञापन मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र के समन्वयक प्रो. संजय कुमार और संचालन डॉ. प्रियंका झा ने किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से विश्वविद्यालय के वरिष्ठ सलाहकार प्रो. कमलशील, डॉ. राहुल मौर्य, डॉ. कृष्णकांत, डॉ. ध्रुव कुमार सिंह, डॉ. धर्मजंग, डॉ. राजेश कुमार श्रीवास्तव, डॉ. राजीव वर्मा, डॉ. ब्यूटी यादव, डॉ. नीरज शर्मा, डॉ. रमेश लाल एवं शोधार्थीगण कुंतालिका, दिव्यान्शी, अनन्या, नेहा, चन्दन, अंजलि, कंचन, रंजीत समेत बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित थे ।

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