बाल विवाह के खात्मे के लिए जरूरी है, 18 वर्ष की उम्र तक मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर संवाद सामाजिक संस्थान की सभी राजनीतिक दलों से इसे चुनावी घोषणापत्र में शामिल करने की अपील ।
बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के गठबंधन की सहयोगी संस्था संवाद सामाजिक संस्थान ने विभिन्न स्थानों पर समुदाय की महिलाओं के साथ बैठक कर अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया।
संवाद के सचिव श्री अतुल तिवारी ने कहा कि वर्ष 2030 तक अगर बाल विवाह मुक्त भारत बनाना है तो 18 वर्ष की उम्र तक के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करना ही होगा। यह पहल बाल विवाह को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, क्योंकि शिक्षा और बाल विवाह के बीच विपरीत संबंध है। साथ ही साथ यह प्रावधान, बाल विवाह के खिलाफ देश की लड़ाई में गेम चेंजर बन सकता है।
बाल विवाह मुक्त भारत द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर भारत में बालिकाओं के लिए विवाह की आयु बढ़ाने में शिक्षा का संबंध और भूमिका की खोज में पाया गया है। कि भारत, जो 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करने और इस अपराध को समाप्त करने के लिए अंतिम बिंदु तक पहुंचने की राह पर है, अगर मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा वास्तविकता बन जाती है तो इसे और गति व दिशा मिल सकती है। “हालांकि केंद्र और राज्य सरकारें बाल विवाह को समाप्त करने के लिए सख्त रुख दिखा रही हैं। किन्तु 18 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों को मौजूदा शिक्षा के अधिकार कानून में शामिल करने के लिए यह संशोधन बाल विवाह को समाप्त करने की गति को तेज कर सकता है।”
बाल विवाह मुक्त भारत अभियान देश भर के 160 गैर सरकारी संगठनों का एक गठबंधन है जो बाल विवाह की उच्च दर वाले 300 से अधिक जिलों में सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है। इसका लक्ष्य 2030 तक देश से इस सामाजिक अपराध को समाप्त करना है। पिछले छह महीनों में ही देश भर में काउंसलिंग के माध्यम से 50,000 बाल विवाह रोके गए हैं, जबकि लगभग 10,000 बाल विवाहों पर कानूनी कार्रवाई शुरू की गई है। विशेष रूप से, वर्ष 2030 तक कम उम्र में बाल विवाह और जबरन विवाह का उन्मूलन भी संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में सभी देशों द्वारा की गई एक वैश्विक प्रतिबद्धता है।
‘बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ के गठबंधन सहयोगी, संवाद सामाजिक संस्थान ने मांग किया है कि इस सामाजिक अपराध को समाप्त करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की इच्छाशक्ति और कार्रवाई सराहनीय है और परिणाम देने वाली है। लेकिन बाल विवाह के खिलाफ इस लड़ाई को बढ़ाने के लिए मजबूत कदम उठाने की जरूरत है। संवाद सामाजिक संस्थान ने जोर देकर कहा कि 18 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों की शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य बनाई जानी चाहिए, और सभी राजनीतिक दलों से आगामी लोकसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में इस महत्वपूर्ण मुद्दे को शामिल करने का भी आग्रह किया।
बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ के गठबंधन ने अपने सक्रिय हस्तक्षेप के माध्यम से पिछले 06 महीनों में देश में होने वाले कुल बाल विवाह में से लगभग 5 प्रतिशत बाल विवाहों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारत भर के विभिन्न क्षेत्रों के उदाहरणों का हवाला देते हुए महिला साक्षरता दर और बाल विवाह की व्यापकता के बीच विपरीत संबंध पर प्रकाश डालता है। उदाहरण के लिए, केरल व मिजोरम जैसे राज्यों में जहाँ महिला साक्षरता दर अधिक है वहीं बाल विवाह अपेक्षाकृत कम है। इसके विपरीत, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जहां महिलाओं की साक्षरता दर कम है, वहाँ बाल विवाह की दर आश्चर्यजनक रूप से अधिक है।
शिक्षा तक पहुंच का विस्तार लड़कियों के लिए शादी की उम्र बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है, जिससे सकारात्मक सामाजिक-आर्थिक परिणाम मिलेंगे और लैंगिक समानता में सुधार होगा।”
हालाँकि, कुछ ऐसे उदाहरण भी हैं, जहां यह संबंध कमजोर लगता है जैसे कि पश्चिम बंगाल, असम व त्रिपुरा जैसे राज्यों में जहां महिला साक्षरता दर अधिक है लेकिन फिर भी बाल विवाह का उच्च प्रसार दिखता है। “इन अपवादों से पता चलता है कि जहां महिला साक्षरता दर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, वहीं अन्य सामाजिक-आर्थिक कारक और सांस्कृतिक प्रथाएं भी इन क्षेत्रों में बाल विवाह के प्रसार को प्रभावित कर सकती
पिछले राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एन०एच०एफ०एस० 2019-21) से पता चला कि देश में 20-24 आयु वर्ग की 23.3 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो गई थी। इस बीच, जनगणना 2011 ने बताया कि हर 3 में से 2 लड़कियों की शादी 15-17 साल की उम्र के बीच हुई थी, जिसका मतलब था कि लगभग 52 लाख लड़कियों में से लगभग 33 लाख को शादी के लिए मजबूर किया गया था।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से संस्थान के कार्यकर्ता धर्मराज, राकेश, हिमांशु आदि लोग उपस्थित रहे।
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